Saturday, June 26, 2021

बजर गिरे...





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न काम पर ,न काज पर
बहस शुरू है  ताज  पर ।

मस्त रहो, मदमस्त रहो
भाषण  के  अंदाज़  पर !

अच्छे दिन  ऐसे  आए
खुजली बढ़ गई खाज़ पर ।

आजादी की चटनी चाट
पेलो  दंड  सुराज  पर ।

तान , विलंबित गाता रह
पूंजी  के   रियाज  पर ।

भूख से मरने वाले मर
या , जी ले सड़े अनाज पर ।

कोई प्रश्न उठाओ मत
साहेब जी के राज पर ।

चढ़े  फूल-माला , मेवा
गुंडों  के  सरताज़  पर ।

नंगई  के  फोटू  छपते
उन्हें  न आती लाज , पर !

बजर गिरे अब तो, जालिम
ऐसे  सड़े  समाज  पर ।

    -- आदित्य कमल

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