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न काम पर ,न काज पर
बहस शुरू है ताज पर ।
मस्त रहो, मदमस्त रहो
भाषण के अंदाज़ पर !
अच्छे दिन ऐसे आए
खुजली बढ़ गई खाज़ पर ।
आजादी की चटनी चाट
पेलो दंड सुराज पर ।
तान , विलंबित गाता रह
पूंजी के रियाज पर ।
भूख से मरने वाले मर
या , जी ले सड़े अनाज पर ।
कोई प्रश्न उठाओ मत
साहेब जी के राज पर ।
चढ़े फूल-माला , मेवा
गुंडों के सरताज़ पर ।
नंगई के फोटू छपते
उन्हें न आती लाज , पर !
बजर गिरे अब तो, जालिम
ऐसे सड़े समाज पर ।
-- आदित्य कमल
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