Friday, February 19, 2021

मजदुरो को न्यूनतम मजदूरी नही, किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य नही, पूंजीवाद में मजदुरो किसानों की यही नियति!

किसान आंदोलन में मजदूरों के शोषण की जब बात होने लगे,तब आंदोलन को किस दिशा में जाते हुए माना जाना चाहिए?

किसान आंदोलन की यह आवश्यकता बन गई है कि यह जीत हासिल करने के लिए अपने मित्र साथी की तलाश करें । छोटी पूंजी के मालिक व धनी किसान भी अब यह महसूस करने लगे हैं कि बिना मजदूरों तथा व्यापक मेहनतकश आबादी की मदद के इस फासीवादी सत्ता और बडे पूंजीपतियों के खिलाफ लड़ाई नहीं जीती जा सकती है ।इसी का परिणाम है कि अब गुरनाम सिंह चढुनी जैसे धनी किसान भी बड़े पूंजीपतियों के खिलाफ किसानों और मजदूरों की एकता की बात कर रहे हैं । वह मजदूरों के न्यूनतम मजदूरी से भी कम मजदूरी मिलने का हवाला दे रहे हैं और किसानों के फसल के न्यूनतम मूल्य से भी कम मूल्य मिलने का उदाहरण देकर मजदूर और किसान एकता की बात कर रहे हैं । उनके अनुसार आजादी की लड़ाई लड़ी गई थी कि लोगों का , लोगों के द्वारा लोगों के लिए सरकार बने लेकिन आज भारत में पूंजीपतियों का , पूंजीपतियों के द्वारा पूंजीपतियों के लिए  सरकार चल रही है ।
आंदोलन के मुद्दे और आंदोलन का फलक विस्तार पा रहा है । परिस्थितियां पूंजीवादी लोकतंत्र को नंगा कर रहा है ' । वैचारिक बहस और आंदोलन को पूरी ताकत से जारी रखा जाना चाहिए और मजदूर वर्ग की एकता और किसानों के साथ संयुक्त मोर्चा की व्यापक संभावनाओं की तलाश करनी चाहिए ।

यह कटु सच्चाई है कि आज की तारीख में मजदूर वर्ग न तो संगठित है और न ही उसकी मजबूत कोई पार्टी है । मजदूर आगे बढ़कर किसानों का नेतृत्व करने की स्थिति में नहीं है .लेकिन पिछले दशकों में लगातार हमले झेलते मजदूर वर्ग भी किसानों के आंदोलन से ऊर्जा पार्क करके अंदर से चेतनशील हो रहा है । मजदूर वर्ग के प्रतिनिधियों को आज ज्यादा से ज्यादा उनके सवालों और देश के हालात को लेकर उनके बीच जाना चाहिए । एक समय था कि मजदूर वर्ग की राजनीति सुधारबाद और नव उदारवादी विचारधाराओं के सुनामी में डूबता उतरता नजर आ रहा था, लेकिन आज उसे लोग सुन रहे हैं ।  आज उस के मुद्दे पर लोग बात कर रहे हैं । हमें उस मुद्दे को अपने वर्ग के बीच में और स्पष्टता के साथ रखने का अभियान चलाना है। हमें बताना है कि जब पूरी दुनिया में उत्पादन का सामाजीकरण हो रहा है , तो पहले से समाज तथा राज्य के नियंत्रण में चल रहे कारखाने और साधनों को पूंजीपतियों को देने के खिलाफ खड़ा होना होगा। हमें छोटी पूंजी के मालिकों को बताना होगा कि पूंजीवादी व्यवस्था के अंदर आपकी यह छोटी दुनिया सुरक्षित नहीं रह सकती है । इसलिए पूरी दुनिया के साधनों के सामा जीकरण का हिस्सा बनकर अपनी पीढ़ियों के लिए बेहतर जीवन सुनिश्चित कीजिए। हमें उन्हें बताना है कि जब तक बड़ी पूंजी के मालिकों के हाथ से उत्पादन के सभी साधनों को छीन कर उसका सामाजीकरण नहीं किया जाएगा , सुपर मुनाफा के बल पर हमेशा आपको और मेहनतकश मजदूर वर्ग को तबाह करते रहेंगे । आज हमारी बातों पर उन्हें विश्वास नहीं होगा , लेकिन आंदोलन जिन परिस्थितियों को तैयार कर रहा है सिर्फ भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में यह बात सुनी जा रही है ।

नरेंद्र कुमार

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