Friday, May 8, 2020

कविता -कुछ लोग

लॉक डाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों के दर्द का बयान करती नोबेल पुरस्कार विजेता विस्वावा शिम्बोर्स्का की कविता

कुछ लोग

कुछ लोग भाग रहे हैं कुछ दूसरों के पास
इस धरती के किसी देश में
कुछ घुमड़ते बादलों के साथ

उन्होंने छोड़ दी हैं कुछ अपनी दिलअज़ीज़ चीज़ें
बोये हुए खेत,मुर्गी के चूजे,कुत्ते
आईने भी जिनमें अब झलकता है आग का अक़्श

उनके कंधों पर हैं घड़े और गठरियाँ
जितनी मिली थीं ख़ाली, उतनी ही भारी हो रही हैं धीरे-धीरे

कुछ थककर गिर जाते हैं चुपचाप और आवाज़ नहीं होती
कोई झपट्टा मारकर ले जाता है किसी की रोटी और हल्ला मच जाता है
कोई मरे से बच्चे को हिला हिलाकर उसे ज़िंदा करना चाहता है

उनके आगे हमेशा कोई न कोई ग़लत रास्ता होता है
अज़ीब सी लाल नदी पर मिलता है
हमेशा उन्हें दूसरा ग़लत पुल
उनके आसपास होती है बंदूक की धांय-धांय
कभी जरा क़रीब, कभी कुछ ज़रा दूर
उनके ऊपर एक हवाई जहाज़ चक्कर सा लगाता रहता है.

आगे आसानी से कुछ भी दिखायी नहीं देगा
रास्ता होगा कुछ धुंधला और पथरीला
अथवा यह कहना बेहतर होगा कि कुछ छोटे या बड़े वक़्फ़े के लिए
उनका कोई वज़ूद भी नहीं होगा

कुछ और ही घटित होगा हालांकि कहाँ और क्या
कोई उनके पास आयेगा हालांकि कब और कौन
वह कितनी शक्लों में आयेगा  किस मक़सद के साथ

अगर उसके पास चुनने का अख़्तियार होगा
तो वह दुश्मन नहीं बनेगा
और उन्हें अपनी जिंदगी गुज़र-बसर करने देगा.

अंग्रेज़ी से अनुवाद : विनोद दास

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