Friday, February 19, 2021

एम एस पी बचाओ आंदोलन और वित्त पूंजी


एम एस पी की लड़ाई डब्ल्यू टी ओ के शागीर्द वित्त पूंजी तथा भारतीय एकाधिकार पूंजी के खिलाफ राजकीय पूंजीवाद को मजबूत बनाएं रखने की लड़ाई है । खुले बाजार और पूंजी के बेलगाम बाजार पर एकाधिकार की छूट के खिलाफ लड़ाई है ।मजदूर वर्ग सहित सभी मेहनतकश वर्ग यदि पूंजी तथा खुले बाजार के वर्चस्व तथा एकाधिकार के खिलाफ संघर्ष में आगे बढ़कर नेतृत्व करने की स्थिति में होंगे तो समाजवाद की लड़ाई लड़ेंगे। यदि नेतृत्व करने की स्थिति में नहीं होंगे, तब भी उस लड़ाई में साथ देंगे और सभी मेहनतकशो को समाजवाद के लिए तैयार करने की मुहिम चलाएंगे । लेकिन किसी भी स्थिति में छोटे पूंजीपतियों के हवाले को सामने रखकर के वित्त पूंजी  और एकाधिकार पूंजी द्वारा खुले बाजार में मेहनतकश उत्पादक शक्तियों को तबाह होकर सर्वहारा बनने का जश्न नहीं मनाएंगे !
सर्वहारा का राज्य सभी छोटे किसानों का उत्पाद खरीदने तथा उत्पादन के साधन उन्हें मुहैया करना सुनिश्चित करता है । अपने शुरुआती दिनों में सर्वहारा राज्य  धनी कुलको को अपना प्रहार का केंद्र नहीं बनाया। सोवियत संघ में लेनिन और स्टालिन के अनुभव पर जिन साथियों को बहस करना है उन्हें नई आर्थिक नीति से लेकर खेती के सामूहिकीकरण के प्रारंभिक दौर पर अपना सैद्धांतिक बहस चलाना चाहिए ।
आज का आंदोलन यदि महज एम एस पी को लागू रखने का भी आंदोलन होता तो यह समाजवाद की दिशा में राजकीय पूंजीवाद को बचाए रखने की लडाई होता जो कि एकाधिकार पूंजीपति और वित्त पूंजी के द्वारा संचालित व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष के रूप में सामने है । । यह आंदोलन एम एस पी से कहीं आगे बाजार व्यवस्था के खिलाफ,  वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन के माध्यम से वित्त पूंजी द्वारा थोपी गई शर्तों के खिलाफ एक व्यापक जनांदोलन है जो फासीवादी राज्य सत्ता  के सामने मजबूत चुनौती पेश कर रहा है । जो लोग अगर मगर करके इस आंदोलन का मजाक उड़ा रहे हैं, जो इस आंदोलन से दूर हैं, वे जाने अनजाने मेहनतकश किसानों और भोजन के लिए पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम (पी डी एस ) के माध्यम से राज्य पर निर्भर गरीब आबादी के खिलाफ बड़ी पूंजी के मौन समर्थन के अपराधी हैं । MSP के विरोध में आग उगलने वाले साथियों को समझना होगा कि किसी भी फसल की कीमत बढ़ाने की लड़ाई और एमएसपी यानी की सरकारी खरीद को बनाए रखने की लड़ाई में फर्क होता है । फसल की कीमत बढ़ाने की लड़ाई धनी किसानों के फायदे की आर्थिक लड़ाई मानी जा सकती है । लेकिन सरकारी खरीद को जारी रखने की लड़ाई पूंजीवाद के हिस्से के रूप में राजकीय पूंजीवाद को बनाए रखने की लड़ाई है ।

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