Friday, June 26, 2020

पाचवा पोस्ट



पाचवा पोस्ट
संक्षेप में,  मार्क्सीय दार्शनिक भौतिकवाद के मुख्य लक्षण ये हैं।
यह समझना आसान है कि सामाजिक जीवन के अध्ययन परसमाज के इतिहास के अध्ययन परदार्शनिक भौतिकवाद के उसूलों को लागू करना कितने भारी महत्व की बात है और समाज के इतिहास और सर्वहारा वर्ग की पार्टी की अमली कार्यवाही पर उन्हें लागू करना कितने भारी महत्व की बात है।
अगर प्रकृति के घटना प्रवाह परस्पर सम्बन्धित और निर्भर हैं और यह प्रकृति के विकास का नियम हैतो उससे नतीजा निकलता है कि सामाजिक जीवन के घटना प्रवाहों का परस्पर सम्बन्ध और निर्भरता समाज के विकास का नियम है और आकस्मिक बात नहीं है।
इसलिये सामाजिक जीवनसमाज का इतिहास, ’आकस्मिक घटनाओं’ का संग्रह नहीं है। वह निश्चित नियमों के अनुसार समाज के विकास का इतिहास बन जाता है और सामाजिक इतिहास के अध्ययन का विज्ञान बन जाता है।
इसलियेसर्वहारा वर्ग की पार्टी की अमली कार्यवाही का आधार ’महापुरुषों’ की शुभ कामनाओं को न बनाना चाहिये, ’बुद्धि’ की पुकार को न बनाना चाहिये, ’विश्वजनीन नैतिकता’ वगैरह को न बनाना चाहियेबल्कि सामाजिक विकास के नियमों को और इन नियमों के अध्ययन को बनाना चाहिये।
और भीअगर संसार जाना जा सकता है और प्रकृति के विकास के नियमों की हमारी जानकारी प्रामाणिक जानकारी हैजिसकी प्रामाणिकता वस्तुगत सच्चाई जैसी हैतो उससे नतीजा निकलता है कि सामाजिक जीवनसामाजिक विकास भी जाना जा सकता है और सामाजिक विकास के नियमों के बारे में विज्ञान की दी हुई सामग्री सच्ची सामग्री है जिसकी प्रामाणिकता वस्तुगत सच्चाई जैसी है।
इसलियेसमाज के इतिहास का विज्ञानसामाजिक जीवन के पेचीदे घटना प्रवाह के बावजूदउतना ही निश्चयात्मक विज्ञान हो सकता है जितनामिसाल के लियेप्राणि-शास्त्र (बायलाॅजी)और वह अमली उद्देश्य के लिये सामाजिक विकास के नियमों से लाभ उठा सकता है।
इसलियेसर्वहारा वर्ग की पार्टी को अपनी अमली कार्यवाही में अनिश्चित उद्देश्यों से अपना रास्ता न निश्चित करना चाहिये बल्कि सामाजिक विकास के नियमों सेऔर इन नियमों से अमली नतीजे निकाल करनिश्चित करना चाहिये।
इसलियेसमाजवाद मानव जाति के सुन्दर भविष्य के लिये एक सपना न रह कर विज्ञान बन जाता है।
इसलियेविज्ञान और अमली कार्यवाही का सम्बन्धसिद्धांत और अमल का सम्बन्धउनकी एकतासर्वहारा वर्ग की पार्टी के लिये ध्रुव नक्षत्र बन जानी चाहिये।
और भीअगर प्रकृतिसत्ताभौतिक संसार मूल है और चेतनाविचार गौण है। उससे उत्पन्न्ा हैअगर भौतिक संसार ऐसी वस्तुगत सच्चाई है जो मनुष्यों की चेतना से स्वतंत्र हैजबकि चेतना इसी वस्तुगत सच्चाई का प्रतिबिम्ब हैतो नतीजा यह निकलता है कि समाज का भौतिक जीवनउसकी सत्ता भी मूल है और उसका मानसिक जीवन गौण हैउससे उत्पन्न्ा हैऔर समाज का भौतिक जीवन ऐसी वस्तुगत सच्चाई है जो मनुष्यों की इच्छा से स्वतंत्र हैजबकि समाज का मानसिक जीवन इस वस्तुगत सच्चाई का प्रतिबिम्ब हैसत्ता का प्रतिबिम्ब है।
इसलियेसमाज के मानसिक जीवन के निर्माण का स्रोतसामाजिक विचारोंसामाजिक सिद्धांतोंराजनीतिक मतों और राजनीतिक संस्थाओं का स्रोत्र खुद विचारोंसिद्धांतोंमतों और राजनीतिक संस्थाओं में न ढूंढना चाहिये बल्कि समाज के भौतिक जीवन की परिस्थितियों मेंसामाजिक सत्ता में ढूंढ़ना चाहियेजिनका प्रतिबिम्ब ये विचारसिद्धांतमत वगैरह हैं।
इसलियेसामाजिक इतिहास के विभिन्न्ा युगों में विभिन्न्ा सामाजिक विचारसिद्धांतमत और राजनीतिक संस्थायें देखी जाती हैं। अगर गुलामी की प्रथा वाले समाज में कोई खास सामाजिक विचारसिद्धांतमत और राजनीतिक संस्थायें मिलती हैंसामंतशाही में दूसरी मिलती हैं और पंूजीवाद में और भी दूसरीतो इसका कारण विचारोंसिद्धांतोंमतों और राजनीतिक संस्थाओं की खुद उनकी ’प्रकृति’ उनके ’गुणों’ में नहीं है बल्कि इसका कारण सामाजिक विकास के विभिन्न्ा युगों मेंसमाज के भौतिक जीवन की विभिन्न्ा परिस्थितियों में है।
समाज की जो भी सत्ता होती हैसमाज के भौतिक जीवन की जो भी परिस्थितियां होती हैंवैसे ही उस समाज के विचारसिद्धांतराजनीतिक मत और राजनीतिक संस्थायें होती हैं।
इस सिलसिले मेंमाक्र्स ने लिखा है: “मनुष्य की चेतना उनकी सत्ता की नियामक नहीं है बल्कि इसके विपरीतउनकी सामाजिक सत्ता उनकी चेतना की नियामक है।” (कार्ल माक्र्ससंÛग्रंÛ , अंÛसंÛ, मास्को, 1946, खण्ड 1, पृष्ठ 300)
इसलिये नीति में ग़लती न करने के लिये जरूरी हैहम निष्क्रिय सपने देखने वालों की जगह न ले लें। इसके लिये जरूरी है कि सर्वहारा वर्ग की पार्टी अपनी कार्यवाही का आधार ’मानव विवेक के’ हवाई ’सिद्धांतों’ को न बनाये बल्कि समाज के भौतिक जीवन की ठोस परिस्थितियों को बनायेजो कि सामाजिक विकास की नियामक शक्ति हैं; ’महापुरुषों’ की शुभ कामनाओं को न बनाये बल्कि समाज के भौतिक जीवन के विकास की सच्ची आवश्यकताओं को बनाये।
कल्पनावादियोंजिनमें लोकवादी शामिल हैंअराजकवादियों और समाजवादी क्रांतिकारियों का पतन इसलिये भी हुआ कि वे सामाजिक विकास में समाज के भौतिक जीवन की परिस्थितियों की प्रमुख भूमिका को नामंजूर करते थे। भाववाद की सतह तक उतर करवे अपनी अमली कार्यवाही का आधार समाज के भौतिक जीवन के विकास की आवश्यकताओं को न बनाते थे बल्कि इन आवश्यकताओं से स्वतंत्र और उनके बावजूद ’आदर्श योजनाओं’ और ’व्यापक कार्यक्रम’ को बनाते थेजो समाज के वास्तविक जीवन से दूर थे।
मार्क्सवाद-लेनिनवाद की शक्ति और सजीवता इस बात में है कि उनकी अमली कार्यवाही का आधार समाज के भौतिक जीवन के विकास की आवश्यकताएं हैं। वह अपने को समाज के वास्तविक जीवन से कभी अलग नहीं करता।
लेकिनमार्क्स के शब्दों से यह नतीजा नहीं निकलता कि समाज के जीवन में सामाजिक विचारोंसिद्धांतोंराजनीतिक मतों और राजनीतिक संस्थाओं का कोई महत्व नहींऔर वे बदले में सामाजिक सत्तासामाजिक जीवन की भौतिक परिस्थितियों के विकास पर असर नहीं डालतीं। अभी तक हम सामाजिक विचारोंसिद्धांतोंमतों और राजनीतिक संस्थाओं के स्रोत की बात कर रहे थेउनका जन्म कैसे होता है इसकी  चर्चा कर रहे थेसमाज का मानसिक जीवन उसके भौतिक जीवन की परिस्थितियों का प्रतिबिम्ब है, - इसकी चर्चा कर रहे थे। जहां तक सामाजिक विचारोंसिद्धांतों,  मतों और राजनीतिक संस्थाओं के महत्व का सवाल हैइतिहास में उनकी भूमिका का सवाल हैवहां उसे अस्वीकार करना तो दूरऐतिहासिक भौतिकवाद सामाजिक जीवन मेंसमाज के इतिहास में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका और उनके महत्व पर ज़ोर देता है।
सामाजिक विचार और सिद्धांत तरह-तरह के होते हैं। पुराने विचार और सिद्धांत होते हैंजिनके दिन बीत चुके हैं और जो समाज की उन शक्तियों का हित साधते हैं जिनकी गति रुक गयी है। उनका महत्व इस बात में है कि वे समाज के विकासउसकी प्रगति को रोकते हैं। फिरनये और आगे बढे़ हुए विचार और सिद्धांत होते हैंजो समाज की आगे बढ़ी हुई शक्तियों का हित साधते हैं। उनका महत्व इस बात में है कि वे समाज के विकासउसकी प्रगति को आसान बनाते हैं। उनका महत्व उतना ही बढ़ जाता है जितना ही सही-सही वे समाज के भौतिक जीवन के विकास की आवश्यकताओं को प्रकट करते हैं।
नये सामाजिक विचार और सिद्धांत तभी पैदा होते हैं जब समाज के भौतिक जीवन का विकास समाज के सामने नये काम पेश कर चुका होता है। लेकिनएक बार पैदा हो जाने पर वह बहुत ही समर्थ शक्ति बन जाते हैं। यह शक्ति उन नये कामों को पूरा करने  में मदद देती है जिन्हें समाज के भौतिक जीवन के विकास ने पेश किया था। वह ऐसी शक्ति है जो समाज की प्रगति में मदद देती है। ठीक यहीं पर नये विचारोंनये सिद्धांतोंनये राजनीतिक मतों और नयी राजनीतिक संस्थाओं का भारी संगठन करने वालाबटोरने  वाला और तब्दीली करने वाला मूल्य प्रकट होता है। नये सामाजिक विचार ठीक इसीलिये
पैदा होते हैं कि वे समाज के लिये जरूरी हैंइसलिये कि अगर वह संगठित करनेबटोरने और तब्दील करने का काम न करें तो समाज के भौतिक जीवन के विकास के लिये जरूरी काम पूरे करना मुमकिन हो जाये। नये सामाजिक विचार और सिद्धांत उन नये कामों से पैदा होते हैं जिन्हें समाज के भौतिक जीवन का विकास पेश करता है।
फिरवे अपना रास्ता बना लेते हैंवे आम जनता की सम्पत्ति बन जाते हैंसमाज की गतिहीन शक्तियों के खिलाफ़ उसे बटोरते और संगठित करते हैं और इस तरहसमाज के भौतिक जीवन को रोकने वाली इन शक्तियों को परास्त करने में मदद देते हैं।
इस तरहसामाजिक विचारसिद्धांत और राजनीतिक संस्थाएं समाज के भौतिक जीवन के विकाससामाजिक सत्ता के विकास के जरूरी कामों के आधार पर पैदा होते हैं। उसके बाद वे खुद सामाजिक सत्ता परसमाज के भौतिक जीवन पर असर डालते हैं। वे ऐसी परिस्थितियां तैयार करते हैं जो समाज के भौतिक जीवन के लिये जरूरी कामों को पूरी तरह करने के लिये और समाज के भौतिक जीवन का अगला विकास मुमकिन बनाने के लिये आवश्यक होते हैं।
इस सिलसिले मेंमार्क्स ने लिखा है:
जनता के हृदय में घर कर लेने परसिद्धांत एक भौतिक शक्ति बन जाते हैं” (हेगेल के दर्शन की आलोचना )।
इसलियेसमाज के भौतिक जीवन की परिस्थितियो पर असर डालने के लिये और उनके विकास और सुधार की गति को तेज़ करने के लियेसर्वहारा वर्ग की पार्टी को ऐसे सामाजिक सिद्धांत का भरोसा करना चाहिये जो सही तौर पर समाज के भौतिक जीवन के विकास की आवश्यकताओं को ज़ाहिर करता हो और इसलियेजो इस योग्य हो कि विशाल जनता को गतिशील बना सके और सर्वहारा पार्टी की भारी फ़ौज के रूप में उन्हें बटोर सके और संगठित कर सके। यह ऐसी फौज होगी जो प्रतिक्रियावादी शक्तियों का ध्वंस करने के लिये और समाज की प्रगतिशील शक्तियों का रास्ता साफ़ करने के लिये तैयार हो।
अर्थवादियों’ और मेन्शेविकों का पतन इसलिये भी हुआ कि वे प्रगतिशील सिद्धांतप्रगतिशील विचारों को बटोरने वालीसंगठित करने वाली और तब्दीली करने वाली भूमिका को नामंजूर करते थे। घटिया भौतिकवाद की सतह पर आकरउन्होंने इन चीजों की भूमिका नहीं के बराबर कर दी थी और इस तरह पार्टी को निष्क्रिय और  निठल्ली बनी रहने के लिये छोड़ दिया था।
मार्क्सवाद-लेनिनवाद की शक्ति और सजीवता इस बात में है कि वह प्रगतिशील सिद्धांत का सहारा लेता हैऐसे सिद्धांत का जो समाज के भौतिक जीवन के विकास की आवश्यकताओं को सही तौर पर प्रतिबिम्बित करता है। वह सिद्धांत को उचित सतह तक उठाता है और अपना कर्तव्य समझता है कि इस सिद्धांत में जो बटोरनेसंगठित करने और तब्दील करने की ताक़त हैउसे रत्ती-रत्ती इस्तेमाल कर ले।
सामाजिक सत्ता और सामाजिक चेतना का सम्बन्ध क्या हैभौतिक जीवन के विकास की परिस्थितियों और समाज के मानसिक जीवन के विकास का सम्बन्ध क्या हैइस सवाल का यही जवाब ऐतिहासिक भौतिकवाद देता है।



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