हमारी समझ है कि पूंजी को बढ़ानेवाली किसी भी व्यवस्था में छोटी पूंजी के मालिक, (छोटे किसान ) बाजार और बड़ी पूंजी के मालिक के द्वारा लुटे जाने के कारण अपनी संपत्ति गंवाने को अभिसप्त हैं. पूंजी रूपी तमाम साधनों का सामाजीकरण किए बगैर उत्पादक वर्ग-- किसान और मजदूर का जीवन नहीं बचेगा. निजी संपत्ति संबंधों तथा उत्पादन के साधनों पर व्यक्ति के एकाधिकार समाप्त कर उसे समाज के अधिकार में लाया जाना ही पूंंजी की मार से बचने का एक मात्र रास्ता है. ऐसा करने से टुटपुंजिया भी दिन रात निजी संपत्ति बढ़ाने के कुकर्म से मुक्ति पाएगा.
साथी *Narendra Kumar* के पोस्ट का अंश
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