इन तीन कृषि कानून के आने के बाद कॉर्पोरेट क्लास को पूरी छूट, आजादी मिल गयी है कि वो जिस प्रदेश के किसान से चाहे कृषि उपज खरीद सकते है, जिस कीमत पर जितना चाहे खरीद कर गोदाम भर सकते है क्योंकि अब जमाखोरी से सम्बंधित कानून में आवश्यक संशोधन कर दिया गया है। फिर खरीदी हुई कृषि उपज को बाजार में पूरे देश मे फैले अपने हजारो बड़े-बड़े रिटेल मॉल के माध्यम से जितनी कीमत चाहे वे हमसे वसूल कर सकते है क्योंकि कीमत एक सीमा के अंदर रखने के लिये कानून में कोई प्रावधान नही रखा गया है।
अप्रैल मई में सरसो का न्यूनतम सरकारी मूल्य था 44 रुपए/ किलो और सरसो के तेल का मूल्य था 80 से 90 रुपए लीटर (खुदरा बाजार में)
अभी तो भंडारण की सीमा थी जिसे जून मे खत्म कर दिया गया और सरसो सेठ जी के गोदाम में पहुंच गई!
आज सरसो का रेट है-लगभग 60 से 65/किलो और सरसो का तेल- 160 रुपए/ लीटर !
अर्थात 166 रुपए किलो जिसपर 200 रुपए से अधिक का मूल्य प्रिंट होकर आना शुरू हो गया है!
यदि किसान आंदोलन तथा अड़ानी अंबानी विरोध न हो रहा होता तो शायद यह प्रिंट रेट पर ही बिकता!!
अभी सरसो की नई फसल आने में तीन महीने बाकी है.
सचमुच, मोदी सरकार के इस दावे में तनिक भी सच्चाई नही है कि यह कानून किसानों के हित में लाया गया है और इससे किसानों की आमदनी दुगुनी हो जाएगी। इस कानून ने कॉर्पोरेट घराने को कृषि उपज पर अधिकतम मुनाफा कमाने की पूरी आजादी प्रदान किया है। इसमें किसानों के लिये कुछ भी नही है, किसानों के नाम पर यह देशी- विदेशी कॉर्पोरेट के पक्ष में बनाया गया कानून है।
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