लोक आवाज़ पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स द्वारा
सितंबर, 2010 मे प्रकाशित सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी (बोल्शेविक) के इतिहास के अध्याय 4 से लिया गया और कामगार-इ-पुस्तकालय द्वारा उनिकोड फोंट मे रूपांत्रित किया गया.
वेब प्राकाशक
कामगार-इ-पुस्तकालय
द्वंद्वात्मक और ऐतिहासिक भौतिकवाद
द्वंद्वात्मक भौतिकवाद मार्क्सवादी लेनिनवादी पार्टी का विश्व-दर्शन है। इसे द्वंद्वात्मक भौतिकवाद इसलिये कहते हैं कि प्रकृति के घटना प्रवाह की तरफ़ इसका रुख, उसका अध्ययन करने और उसे समझने का इसका तरीका द्वंद्ववादी है। प्रकृति के घटना प्रवाह की व्याख्या करने, इस घटना प्रवाह के बारे में उसके विचार, उसके सिद्धांत भौतिकवादी हैं।
ऐतिहासिक भौतिकवाद सामाजिक जीवन में द्वंद्वात्मक भौतिकवाद के उसूलों को लागू करता है। वह सामाजिक जीवन के घटना प्रवाह में, समाज और उसके इतिहास के अध्ययन में द्वंद्वात्मक भौतिकवाद के उसूलों को लागू करता है।
मार्क्स और एंगेल्स जब अपने द्वंद्वात्मक तरीके का वर्णन करते हैं तो वे आम तौर से दार्शनिक हेगेल का हवाला देते हैं, जिसने द्वन्द्ववाद के मुख्य लक्षण बतलाये थे। लेकिन, इसका यह मतलब नहीं है कि मार्क्स और एंगेल्स का द्वंद्ववाद हेगेल के द्वंद्ववाद से बिल्कुल मिलता-जुलता है। दरअसल, मार्क्स और एंगेल्स ने हेगेल के द्वंद्ववाद से उसका ’बुद्धिसंगत तत्व’ ही लिया था। उन्होंने हेगेल के भाववाद का छिलका अगल कर दिया था। उन्होंने द्वंद्ववाद को और आगे विकसित किया था, जिससे उसे एक आधुनिक वैज्ञानिक रूप मिले।
मार्क्स ने कहा था:
“मेरा द्वन्द्ववादी तरीका हेगेल के तरीके से भिन्न् ही नहीं है, बल्कि उसका ठीक उल्टा है। हेगेल ... विचार करने की प्रक्रिया को ’विचार’ के नाम पर एक स्वतंत्र विषय तक बना देता है। उसके लिये यही चिंतन वास्तविक संसार की प्रेरणा-शक्ति (उसका रचयिता) है। उसके लिये वास्तविक संसार सिर्फ़ ’विचार’ का बाहरी, घटना प्रवाह वाला रूप है। इसके विपरीत, मेरे लिये विचार इसके सिवा कुछ नहीं है कि भौतिक संसार ही इंसान के दिमाग में प्रतिबिम्बित हुआ है और विचार के रूपों में तब्दील हो गया है।” (कार्ल मार्क्स, पूंजी, खण्ड 1, पृष्ठ 30, जार्ज ऐलेन एण्ड अनविन लिमिटेड, 1938)।
अपने भौतिकवाद का वर्णन करते हुए, मार्क्स और एंगेल्स अक्सर दार्शनिक फ़ायरबाख का हवाला देते हैं, जिसने भौतिकवाद को उसके उचित अधिकार दिलाये थे। लेकिन, इसका यह मतलब नहीं है कि मार्क्स और एंगेल्स का भौतिकवाद फ़ायरबाख के भौतिकवाद से बिल्कुल मिलता-जुलता है। दरअसल, मार्क्स और एंगेल्स ने फ़ायरबाख के भौतिकवाद से उसका ’आंतरिक तत्व’ निकाल लिया था। उन्होंने उसे भौतिकवाद के वैज्ञानिक दार्शनिक सिद्धांत के रूप में विकसित किया। उन्होंने उसके भाववादी और धार्मिक-नैतिक लावादे को फेंक दिया। फ़ायरबाख बुनियादी तौर से भौतिकवादी था, लेकिन हम जानते हैं कि वह भौतिकवाद, इस नाम पर आपत्ति करता था। एंगेल्स ने कई बार कहा था कि भौतिकवादी “बुनियाद के बावजूद ’फायरबाख’ भाववाद की परम्परागत, बेड़ियों में जकड़ा रहा” और “फ़ायरबाख का असली भाववाद वैसे ही ज़ाहिर हो जाता है जैसे ही हम धर्म और नैतिकता के उसके दर्शन के नज़दीक पहुंचते हैं।” (कार्ल मार्क्स, संÛग्रंÛ , अंÛसंÛ, मास्को, 1946, खण्ड 1, पृष्ठ 373-375)।
दियालेक्तिका (द्वंद्ववाद) शब्द ग्रीक धातु दियालेगो से बना है, जिसका अर्थ है चर्चा करना, वाद-विवाद करना। पुराने ज़माने में, द्वंद्ववाद वह कला थी जिससे विरोधी की दलीलों में असंगतियां दिखला कर और उन असंगतियों को दूर करके सत्य तक पहुंचा जा सकता था। पुराने ज़माने में, ऐसे दार्शनिक थे जो समझते थे कि चिन्तन की असंगतियां प्रकट करना और विरोधी विचारों का टकराना सच्चाई तक पहुंचने का सबसे अच्छा तरीक़ा है। चिन्तन का यह द्वंद्ववादी तरीका, जो बाद में के घटना प्रवाह पर भी लागू किया गया, विकसित होकर प्रकृति को जानने-पहचानने का द्वंद्ववादी तरीका बन गया। इस तरीके़ के अनुसार, प्रकृति का घटना प्रवाह सदा ही गतिशील है और सदा ही परिवर्तनशील है। इस तरीक़े के अनुसार, प्रकृति का विकास प्रकृति की असंगतियों के विकास का ही नतीजा है, प्रकृति के भीतर विरोधी शक्तियों के घात-प्रतिघात का ही नतीजा है।
तत्व रूप से, द्वंद्ववाद अधिभूतवाद (मेटाफ़िजिक्स) का ठीक उल्टा है।
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