Friday, May 22, 2020

श्रम कानूनों में बदलाव के खिलाफ प्रदर्शन

संकट के दौरान अप्रत्याशित लॉक्ड डाउन से उपजे स्थिति से निपटने में पूरी तरह नाकामयाब
सरकारों का दावा है कि वो मजदूरों का ख्याल रख रही हैं। कैसे? मजदूरों को सुरक्षा देने वाले देश के श्रम कानूनों को खत्म करके!
काम के घण्टे को 8 घण्टे से बढ़ा कर 12 घण्टे कर के! यह मजदुरो के हित मे कैसे हो सकता है?
आज पूरे देश मे जगह-जगह  मजदुरो, नागरिको एवम बुद्धिजीवियों द्वारा विरोध  प्रदर्शन हो रहा है।

हम इस विरोध प्रदर्शन का पूरा समर्थन करते है।

साथी धनंजय का ग्राउंड रिपोर्ट

एक)
दो) 
तीन)

साथी इंदरजीत का ग्राउंड रिपोर्ट

एक)
दो)
तीन)
साथी आदित्य कमल का रिपोर्ट




Tuesday, May 19, 2020

रिपोर्ट 19 मई 2020

वार्ड नंबर 46, हाउसिंग कॉलोनी, विजय नगर, कांटी फैक्ट्री रोड, कंकड़बाग, पटना के किराए पर रहने वाले मजदूरों से लिया गया इंटरव्यू का संक्षिप्त रिपोर्ट।
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आज दिनांक 19/05/2020 को वार्ड नंबर 46, हाउसिंग कॉलोनी, विजय नगर, कांटी फैक्ट्री रोड, कंकड़बाग, पटना के किराए पर रहनेवाले मजदूरों और घरेलू महिला कामगारों से मैंने और हमारे साथी रंजीत कुमार ने बातचीत की और उनकी समस्याओं को समझा।

बिहार की नीतीश सरकार प्रतिदिन शहरी और ग्रामीण मजदूरों को राशन देने की बात कर रही है, लेकिन उसकी जमीनी हकीकत कुछ और ही है। पटना शहर में रहनेवाले अधिकतर किरायेदार मजदूरों को कोई राहत सामग्री अभी तक उपलब्ध नहीं हो सका है। हम मजदूरों की जिस बस्ती में गये थे उसकी वार्ड पार्षद पुनम शर्मा हैं। मजदूरों का कहना था कि पुनम शर्मा ने एक बार भी उनके इलाके में आकर उनका हालचाल नहीं पूछा। यहां तक कि उनके पास जाने पर केवल आश्वासन दिया गया। कुछ मजदूरों का फॉर्म भराया गया है, लेकिन अभी तक उन्हें कोई सहायता राशि प्राप्त नहीं हुआ है। वहां के कई मजदूरों को हमारे यूनियन की तरफ से कुछ सहायता सामग्री दी गई थी, लेकिन वह भी उनके लिए पूरा नहीं था। वे आज भी इधर-उधर से कर्ज लेकर अपना जीवन चला रहे हैं। आलिशान अपार्टमेंट में झाड़ू-बर्तन का काम करने वाली कामगार महिलाओं को उनके मालिकों ने उन्हें काम से निकाल दिया है। एक-दो रहमदिल मालिकों को छोड़कर बाकी ने उन्हें लॉकडाउन में किसी प्रकार की कोई मदद नहीं की। यह वही मध्यम वर्ग है, जो मोदी के कहने पर थाली पीटते हैं और दीया जलाकर इस संकट में भी दीपावली मनाते हैं ‌। आज इनकी इंसानियत की पोल भी खुल गई है। मजदूर इस तनाव में जी रहे हैं कि वे मकान का किराया कैसे देंगे ? उनका काम-धाम बंद है और मकान मालिक किराया देने के लिए उन पर लगातार दबाव बना रहे हैं। अधिकतर मजदूर काम की तलाश में पुलिस से छिपते-छिपाते इधर-उधर मारे-मारे फिरते हैं, फिर भी उन्हें कोई काम नहीं मिलता है। सभी मजदूरों का कहना है कि वे कोरोनावायरस से बाद में मरेंगे, लेकिन उससे पहले उन्हें भूखे मार देगा। अतः सरकार किसी भी कीमत पर उन्हें काम दें और तक तक के लिए भोजन-पानी की व्यवस्था करें। अपनी बात रखनेवालोें में गणेश शाह(राजमिस्त्री), दिलीप कुमार (निर्माण मजदूर), चांदनी देवी (सब्जी-बिक्रेता), कृष्णा देवी (घरेलू कामगार), सोनी देवी (घरेलू महिला, लेकिन पति मजदूर), रिंकु देवी ( घरेलू कामगार), बबीता देवी (घरेलू कामगार) तथा धनंजय कुमार (राजमिस्त्री) थे।

वीडियो के लिये क्लिक करे


Friday, May 8, 2020

कविता -कुछ लोग

लॉक डाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों के दर्द का बयान करती नोबेल पुरस्कार विजेता विस्वावा शिम्बोर्स्का की कविता

कुछ लोग

कुछ लोग भाग रहे हैं कुछ दूसरों के पास
इस धरती के किसी देश में
कुछ घुमड़ते बादलों के साथ

उन्होंने छोड़ दी हैं कुछ अपनी दिलअज़ीज़ चीज़ें
बोये हुए खेत,मुर्गी के चूजे,कुत्ते
आईने भी जिनमें अब झलकता है आग का अक़्श

उनके कंधों पर हैं घड़े और गठरियाँ
जितनी मिली थीं ख़ाली, उतनी ही भारी हो रही हैं धीरे-धीरे

कुछ थककर गिर जाते हैं चुपचाप और आवाज़ नहीं होती
कोई झपट्टा मारकर ले जाता है किसी की रोटी और हल्ला मच जाता है
कोई मरे से बच्चे को हिला हिलाकर उसे ज़िंदा करना चाहता है

उनके आगे हमेशा कोई न कोई ग़लत रास्ता होता है
अज़ीब सी लाल नदी पर मिलता है
हमेशा उन्हें दूसरा ग़लत पुल
उनके आसपास होती है बंदूक की धांय-धांय
कभी जरा क़रीब, कभी कुछ ज़रा दूर
उनके ऊपर एक हवाई जहाज़ चक्कर सा लगाता रहता है.

आगे आसानी से कुछ भी दिखायी नहीं देगा
रास्ता होगा कुछ धुंधला और पथरीला
अथवा यह कहना बेहतर होगा कि कुछ छोटे या बड़े वक़्फ़े के लिए
उनका कोई वज़ूद भी नहीं होगा

कुछ और ही घटित होगा हालांकि कहाँ और क्या
कोई उनके पास आयेगा हालांकि कब और कौन
वह कितनी शक्लों में आयेगा  किस मक़सद के साथ

अगर उसके पास चुनने का अख़्तियार होगा
तो वह दुश्मन नहीं बनेगा
और उन्हें अपनी जिंदगी गुज़र-बसर करने देगा.

अंग्रेज़ी से अनुवाद : विनोद दास

मई दिवस -चिट्ठी

मई दिवस के शहीद अल्बर्ट पार्सन्स की नवंबर 1887 में शहादत के बाद उनकी पत्नी लूसी पार्सन्स ने उनके संघर्ष को जारी रखा और 1942 में अपने जीवन की आखरी साँस तक अपना पूरा जीवन मज़दूर वर्ग की जुझारू कम्युनिस्ट कार्यकर्ता के रूप में संघर्षों के रास्ते बिताया।

पेश है अल्बर्ट पार्सन्स द्वारा लिखा गया फाँसी के ठीक पहले अपनी पत्नी लूसी पार्सन्स के नाम पत्र:

कुक काउण्टी बास्तीय जेल, 
कोठरी नं. 29
शिकागो, 20 अगस्त, 1886

मेरी प्रिय पत्नी,

आज सुबह हमारे बारे में हुए फैसले से पूरी दुनिया के अत्याचारियों में ख़ुशी छा गयी है, और शिकागो से लेकर सेण्ट पीटर्सबर्ग तक के पूँजीपति आज दावतों में शराब की नदियाँ बहायेंगे। लेकिन, हमारी मौत दीवार पर लिखी ऐसी इबारत बन जायेगी जो नफ़रत, बैर, ढोंग-पाखण्ड, अदालत के हाथों होने वाली हत्या, अत्याचार और इन्सान के हाथों इन्सान की ग़ुलामी के अन्त की भविष्यवाणी करेगी। दुनियाभर के दबे-कुचले लोग अपनी क़ानूनी बेड़ियों में कसमसा रहे हैं। विराट मज़दूर वर्ग जाग रहा है। गहरी नींद से जागी हुई जनता अपनी ज़ंजीरों को इस तरह तोड़ फेंकेगी जैसे तूफ़ान में नरकुल टूट जाते हैं।

हम सब परिस्थितियों के वश में होते हैं। हम वैसे ही हैं जो परिस्थितियों ने हमें बनाया। यह सच दिन-ब-दिन साफ़ होता जा रहा है।

ऐसा कोई सबूत नहीं था कि जिन आठ लोगों को मौत की सज़ा सुनायी गयी है उनमें से किसी को भी हेमार्केट की घटना की जानकारी थी, या उसने इसकी सलाह दी या इसे भड़काया। लेकिन इससे क्या फ़र्क़ पड़ता है। सुविधाभोगी वर्ग को एक शिकार चाहिए था, और करोड़पतियों की पाग़ल भीड़ की ख़ून की प्यासी चीख़-पुकार को शान्त करने के लिए हमारी बलि चढ़ायी जा रही है क्योंकि हमारी जान से कम किसी चीज़ से वे सन्तुष्ट नहीं होंगे। आज एकाधिकारी पूँजीपतियों की जीत हुई है! ज़ंजीर में जकड़ा मज़दूर फाँसी के फन्दे पर चढ़ रहा है क्योंकि उसने आज़ादी और हक़ के लिए आवाज़ उठाने की हिम्मत की है।

मेरी प्रिय पत्नी, मुझे तुम्हारे लिए और हमारे छोटे-छोटे बच्चों के लिए अफ़सोस है।

मैं तुम्हें जनता को सौंपता हूँ, क्योंकि तुम आम लोगों में से ही एक हो। तुमसे मेरा एक अनुरोध है – मेरे न रहने पर तुम जल्दबाज़ी में कोई काम नहीं करना, पर समाजवाद के महान आदर्शों को मैं जहाँ छोड़ जाने को बाध्य हो रहा हूँ, तुम उन्हें और ऊँचा उठाना।

मेरे बच्चों को बताना कि उनके पिता ने एक ऐसे समाज में, जहाँ दस में से नौ बच्चों को ग़ुलामी और ग़रीबी में जीवन बिताना पड़ता है, सन्तोष के साथ जीवन बिताने के बजाय उनके लिए आज़ादी और ख़ुशी लाने का प्रयास करते हुए मरना बेहतर समझा। उन्हें आशीष देना; बेचारे छौने, मैं उनसे बेहद प्यार करता हूँ। आह, मेरी प्यारी, मैं चाहे रहूँ या न रहूँ, हम एक हैं। तुम्हारे लिए, जनता और मानवता के लिए मेरा प्यार हमेशा बना रहेगा। अपनी इस कालकोठरी से मैं बार-बार आवाज़ लगाता हूँ : आज़ादी! इन्साफ़! बराबरी!

– अल्बर्ट पार्सन्स

फ्रेडरिक ऐंगेल्स का #कार्ल मार्क्स की समाधि पर दिया गया #भाषण


14 मार्च को तीसरे पहर, पौने तीन बजे, संसार के सब से महान जीवित विचारक की चिंतन-क्रिया बंद हो गई। उन्हें मुश्किल से दो मिनट के लिए अकेला छोड़ा गया होगा, लेकिन जब हम लोग लौट कर आए, हमने देखा कि वह आरामकुर्सी पर शांति से सो गए हैं -परन्तु सदा के लिए। 
इस मनुष्य की मृत्यु से यूरोप और अमरीका के जुझारू सर्वहारा वर्ग की और ऐतिहासिक विज्ञान की अपार क्षति हुई है। इस ओजस्वी आत्मा के महाप्रयाण से जो अभाव पैदा हो गया है, लोग शीघ्र ही उसे अनुभव करेंगे। जैसे की जैव प्रकृति में डार्विन ने विकास के नियम का पता लगाया था, वैसे ही मानव इतिहास में मार्क्स ने विकास के नियम का पता लगाया था। उन्हों ने इस सीधी-सादी सचाई का पता लगाया - जो अब तक विचारधारा की अतिवृद्धि से ढंकी हुई थी - कि राजनीति, विज्ञान, कला, धर्म आदि में लगने से पूर्व मनुष्य जाति को खाना पीना, पहनना ओढ़ना और सिर के ऊपर साया चाहिए। इसलिए जीविका के तात्कालिक भौतिक साधनों का उत्पादन और फलतः किसी युग में अथवा किसी जाति द्वारा उपलब्ध आर्थिक विकास की मात्रा ही वह आधार है जिस पर राजकीय संस्थाएँ, कानूनी धारणाएँ, कला और यहाँ तक कि धर्म-संबंधी धारणाएँ भी विकसित होती हैं। इसलिए इस आधार के ही प्रकाश में इन सब की व्याख्या की जा सकती है, न कि इस से उल्टा, जैसा कि अब तक होता रहा है।
परन्तु इतना ही नहीं, मार्क्स ने गति के उस विशेष नियम का पता लगाया जिस से उत्पादन की वर्तमान पूंजीवादी प्रणाली और इस प्रणाली से उत्पन्न पूँजीवादी समाज दोनों ही नियंत्रित हैं। अतिरिक्त मूल्य के आविष्कार से एकबारगी उस समस्या पर प्रकाश पड़ा, जिसे हल करने की कोशिश में किया गया अब तक सारा अन्वेषण - चाहे वह पूँजीवादी अर्थशास्त्रियों ने किया हो य़ा समाजवादी आलोचकों न, अन्ध विश्लेषण ही था। ऐसे दो आविष्कार एक जीवन के लिए पर्याप्त हैं। वह मनुष्य भाग्यशाली है, जिसे इस तरह का एक भी आविष्कार करने का सौभाग्य प्राप्त होता है। परंतु जिस भी क्षेत्र में मार्क्स ने खोज की -और उन्हों ने बहुत से क्षेत्रों में खोज की और एक में भी सतही छानबीन कर के ही नहीं रह गए - उस में यहाँ तक कि गणित में भी, उन्हों ने स्वतंत्र खोजें कीं। 
ऐसे वैज्ञानिक थे वह। परंतु वैज्ञानिक का उन का रूप उन के समग्र व्यक्तित्व में अर्धांश भी न था। मार्क्स के लिए विज्ञान ऐतिहासिक रूप से एक गतिशील, क्रांतिकारी शक्ति था। वैज्ञानिक सिद्धांतों में किसी नयी खोज से, जिस के व्यावहारिक प्रयोग का अनुमान लगाना अभी सर्वथा असंभव हो, उन्हें कितनी भी प्रसन्नता क्यों न हो, जब उन की खोज से उद्योग-धन्धों और सामान्यतः ऐतिहासिक विकास में कोई तात्कालिक क्रांतिकारी परिवर्तन होते दिखाई देते थे, तब उन्हें बिलुकुल ही दूसरे ढंग की प्रसन्नता का अनुभव होता था। उदाहरण के लिए बिजली के क्षेत्र में हुए आविष्कारों के विकास-क्रम का और मरसेल देप्रे के हाल के आविष्कारों का मार्क्स बड़े गौर से अध्ययन कर रहे थे।

मार्क्स सर्वोपरि क्रान्तिकारी थे। जीवन में उन का असली उद्देश्य किसी न किसी तरह पूँजीवादी समाज और उस से पैदा होने वाली राजकीय संस्थाओं के ध्वंस में योगदान करना था, आधुनिक सर्वहारा वर्ग को आजाद करने में योग देना था, जिसे सब से पहले उन्हों ने ही अपनी स्थिति और आवश्यकताओं के प्रति सचेत किया और बताया कि किन परिस्थितियों में उस का उद्धार हो सकता है। संघर्ष करना उन का सहज गुण था। और उन्हों ने ऐसे जोश, ऐसी लगन और ऐसी सफलता के साथ संघर्ष किया जिस का मुकाबला नहीं है। प्रथम राइनिश जाइटुंग (1842) में, पेरिस के वॉरवार्टस् (1844) में देत्शे ब्रूसेलर जाइटुंग (1847) में, न्यू राइनिश जाइटुंग (1848-49) में, न्यूयॉर्क डेली ट्रिब्यून (1852-1861) में उन का काम, उस के अलावा अनेक जोशीली पुस्तिकाओं की रचना, पेरिस, ब्रुसेल्स और लन्दन के संगठनों में काम और अन्ततः उनकी चरम उपलब्धि महान अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर संघ की स्थापना - यह इतनी बड़ी उपलब्धि थी कि इस संगठन का संस्थापक, यदि उस ने और कुछ भी न किया होता, उस पर उचित ही गर्व कर सकता था। 
इन सब के फलस्वरूप मार्क्स अपने युग के सब से अधिक विद्वेष तथा लांछना के शिकार बने। निरंकुशतावादी और जनतंत्रवादी, दोनों ही तरह की सरकारों ने उन्हे अपने राज्यों से निकाला। पूंजीपति चाहे वे रूढ़िवादी हों चाहे घोर जनवादी, मार्क्स को बदनाम करने मं एक दूसरे से होड़ करते थे। मार्क्स इस सब को यूँ झटकार कर अलग कर देते थे जैसे वह मकड़ी का जाला हो, उस की ओर ध्यान न देते थे, आवश्यकता से बाध्य हो कर ही उत्तर देते थे। और अब वह इस संसार में नहीं हैं। साइबेरिया की खानों से ले कर केलिफोर्निया तक, यूरोप और अमरीका के सभी भागों में उस के लाखों क्रांतिकारी मजदूर साथी जो उन्हें प्यार करते थे, उन के प्रति श्रद्धा रखते थे, आज उन के निधन पर आँसू बहा रहे हैं। मैं यहाँ तक कह सकता हूँ कि चाहे उन के विरोधी बहुत रहे हों, परन्तु उनका कोई व्यक्तिगत शत्रु शायद ही रहा हो। 
उन का नाम युगों-युगों तक अमर रहेगा, वैसे ही उन का काम भी अमर रहेगा!

यह भाषण कार्ल मार्क्स के अभिन्न साथी फ्रेडरिक ऐंगेल्स द्वारा हाईगेट क़ब्रिस्तान, लंदन में, 17 मार्च 1883 को अंग्रेजी में दिया गया था।

Thursday, May 7, 2020

भगत सिंह छात्र युवा संगठन के द्वारा जारी प्रेस- विज्ञप्ति


सेवा में, 
सभी अखबारों के संपादक महोदय!
विषय- तीन मई को सूरत (गुजरात) में मजदूरों पर हुए लाठीचार्ज तथा चार मई को कर्नाटक सरकार द्वारा श्रमिक ट्रेन को रद्द कर मजदूरों को एक प्रकार से बंधक बनाकर रखने के संदर्भ में। 
महाशय,
      पिछले तीन मई को गुजरात के सूरत शहर में वहां के मकान मालिकों के खिलाफ प्रवासी मजदूर सड़क पर उतर आए, क्योंकि वहां के मकान मालिक उनसे जबरदस्ती किराया वसूल कर रहे हैं। सरकार ने मकान मालिकों का पक्ष लेते हुए मज़दूरों पर लाठियां चलाई और उन्हें खदेड़-खदेड़ कर पिटा। यह बहुत ही शर्मनाक और अमानवीय घटना है। हम इसकी कड़े शब्दों में भर्त्सना करते हैं और बिहार राज्य सरकार से इसमें हस्तक्षेप करने की मांग करते हैं। 
   प्रवासी मजदूरों ने अपने-अपने राज्य सरकारों से वापस बुलाने की गुहार लगाई थी। इसलिए विभिन्न मजदूर संगठनों, बुद्धिजीवियों तथा रवीश कुमार जैसे पत्रकारों के दबाव में आकर सरकार ने बसों एवं ट्रेनों से मजदूरों को वापस लाने का निर्णय किया है। लेकिन अपनी मुनाफाखोर संस्कृति के कारण मजदूरों की इतनी दयनीय दशा में भी सरकार उनसे किराया वसूल रही है। इस पर भी 5 मई को कर्नाटक सरकार ने दक्षिण-पश्चिम रेलवे के श्रमिक ट्रेन को बिहार आने से रोक दिया है और उस पर प्रतिबंध लगा दिया है। उन्होंने यह प्रतिबंध वहां के बिल्डर पूंजीपतियों के कहने पर लगाया है जो चाहते हैं कि मजदूर वापस घर नहीं जाएं और इस लॉकडॉन की स्थिति में भी उनके फैक्ट्री में जान हथेली पर रखकर काम करते रहें। यह उनकी अमानवीयता का चरम उत्कर्ष है।
हम भगत सिंह छात्र युवा संगठन की तरफ से गुजरात में हुए लाठीचार्ज तथा कर्नाटक में मजदूरों को घर आने से रोकने के निर्णय की निंदा करते हैं। हम केंद्र एवं राज्य सरकारों से मजदूरों के हित में निम्नलिखित मांग करते हैं -
1. पूंजीपतियों के कहने पर केंद्र सरकार 12 घंटे काम करने का जो अध्यादेश लाने जा रही है, उस पर वह प्रतिबंध लगाए और काम के घंटे 8 से घटाकर 6 करें, ताकि ज्यादा से ज्यादा मजदूरों को काम मिल सके।

2. प्रवासी मजदूरों के घर वापसी को सुनिश्चित किया जाए। उनके लिए बसों, ट्रेनों एवं हवाई जहाज की व्यवस्था की जाए। उनसे किसी भी प्रकार का कोई शुल्क ना लिया जाए।

3. जो मजदूर अपनी इच्छा से विभिन्न राज्यों के औद्योगिक क्षेत्रों में ही रहना चाहते हैं, उनके लिए रहने तथा खाने-पीने की व्यवस्था की जाए।
4. सभी प्रवासी तथा ग्रामीण मजदूरों को ₹2000 बेरोजगारी भत्ता दिया जाए। 
5. केंद्र सरकार यह घोषणा करें कि जब तक लॉकडाउन है किसी भी मजदूर से मकान मालिक किराया न ले। वह लॉकडॉन का किराया माफ कर देने का आदेश पारित करें।
6. भूख से मरने वाले मजदूरों के परिवारों को ₹500000 राज्य सरकार देने की घोषणा करें।
7. कोरोना वायरस से बचने के लिए सरकार मजदूरों को मास, साबुन, सैनिटाइजर तथा अन्य आवश्यक सामग्री निशुल्क उपलब्ध कराने की व्यवस्था करे।
 भवदीय
इन्द्रजीत कुमार (अध्यक्ष)
भगत सिंह छात्र युवा संगठन